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Manav Mal or Shauch

मानव मल या शौच

मानव मल किसे कहते हैं?

पाचक अंगों द्वारा आहार से सारे पोषक तत्व ग्रहण करने के पश्चात् शेष शुष्क भाग मानव मल या शौच  कहलाता है।

मल में जल, वसा (fat), पित्तवर्णक (bile pigments), नाइट्रोजन,

अपचित भोज्य पदार्थ- सेल्यूलोज़(cellulose), रक्त या आंत की भित्तियों (intestinal walls) के व्यर्थ के उत्पाद के अतिरिक्त

जीवाणु (bacteria) भी होते हैं।

मानव मल

कैसे बनता है मानव मल या शौच  ?

जब काइम/chyme (आमाशय भित्ति में अर्धतरल चिकना व श्लेष्मयुक्त ठोस पदार्थ-लुगदी जैसा) छोटी आंत से होता हुआ बड़ी आंत में पहुंचता है तो इसका लगभग पूर्ण पाचन हो चुका होता है।

परन्तु कुछ मात्रा में जल, लवण एवं विटामिन अवशोषित होने (absorption) के लिए शेष रह जाते हैं।

प्रतिदिन बड़ी आंत में प्रवेश करने वाले काइम की मात्रा 100-500 मि.ली. के बीच रहती है।

जिसका मात्र एक तिहाई भाग मल बनकर विसर्जित होता है।

बड़ी आंत से होकर निकलने पर काइम के अधिकांश जल का अवशोषण बड़ी आंत के हिस्से Ascending & Transverse colon के द्वारा हो जाता है।

जिससे काइम मलाशय (rectum) तक पहुंचने पर मानव मल या शौच के रुप में अर्द्धठोस बन जाता है। निर्जलीकरण (dehydration) से बचने हेतु बड़ी आंत में जल अवशोषण की प्रक्रिया घटित होती है।

मानव मल या शौच  विसर्जन की प्रक्रिया

भोजन ग्रहण करने के बाद बड़ी आंत के Ascending & Transverse Colon में दिनभर में 3-4 बार समकालिक संकुचन (synchronous contraction) होने से गतिशीलता तीव्रता से होने लगती है।

फिर कुछ क्षणों में ही colon की आधी से तीन चौथाई लंबाई में मल खिसक जाता है।

ये क्रमाकुंचन तरंगें (sweeping) सामूहिक गतियाँ (mass movements) कहलाती हैं।

ये मल को Descending Colon में खिसका देती हैं।  जहां ये विसर्जित (defecate) होने तक संचयित रहता है।

जब भोजन आमाशय में पहुंचता है तो गैस्ट्रोकॉलिक प्रतिवर्त (Gastro colic reflex) द्वारा कॉलन में सामूहिक गतियाँ उतपन्न होती हैं।

अमाशय से कॉलन में प्रतिवर्त गैस्ट्रीन के स्राव एवं बाह्य ऐच्छिक तंत्रिकाओं द्वारा पहुंचता है।

गैस्ट्रकॉलिक प्रतिवर्त मल को मलाशय में खिसका देता है।

और डेफिकेशन प्रतिवर्त (defecation reflex) उत्पन्न होकर गुदा द्वारा मल निष्कासित हो जाता है।

सामान्यतः मानव मल या शौच विसर्जन की प्रक्रिया निम्न प्रकार से होती है-

  1. जब मलाशय में मल एकत्रित होने के साथ ही फैल जाता है। जिससे भित्तियां (rectum walls) तनने लगती हैं।
  2. मलाशय में दवाब बढ़ने लगता है जिससे भित्तियों में विद्यमान तंत्रिका अंत (receptors) उद्दीप्त हो जाते हैं।
  3. जब कोई मानव मल या शौच  विसर्जन की इच्छा बनाता है।
  4. तब Defecation Reflex आरम्भ होने लगता है।
  5. Descending Colon में क्रमाकुंचन तरंगें उद्दीप्त (stimulate) होने लगती हैं।
  6. इसी के साथ ही आंतरिक गुदीय संकोचिनी (internal anal sphincter) शिथिल हो जाती है।
  7. मलाशय व सिग्मोइड कॉलन शक्ति के साथ संकुचित हो जाते हैं।
  8. हमारे मस्तिष्क के सबसे निचले भाग सुषुम्ना मज्जा (medulla Oblongata) में मल विसर्जन प्रतिवर्त होना प्रारम्भ होता है जो कि उद्दीपनों को स्पाइनल कॉर्ड के सैक्रल भाग में पहुंचा देता है।
  9. मल निष्कासन में धकेलने की क्रिया उतपन्न होती है।
  10. जिसमें उदरीय पेशियों (abdominal muscles) व डायाफ्राम (diaphragm) के संकुचित होने और नीचे की तरफ बल लगाने से पेट में दवाब बढ़ जाता है, जिससे मल विसर्जन में सहायता मिलती है।
  11. बाह्य गुदीय संकोचिनी(external anal sphincter) एवं अन्य पेरिनियल पेशियॉं (perineal muscles) शिथिल हो जाती हैं।
  12. तथा sigmoid colon एवं मलाशय में बढ़ने वाली क्रमाकुंचन तरंगें (sweeping) ढीली पड़ चुकीं आंतरिक एवं बाह्य गुदीय संकोचिनियों से मल को नीचे धकेल देती हैं जिससे गुदा से होते हुए शरीर से बाहर मल विसर्जित हो जाता है।

मल विसर्जन एक ऐच्छिक क्रिया

मेरुदंड (spinal cord) के रोग से ग्रसित व्यक्तियों और बहुत छोटे बच्चों के अतिरिक्त अन्य के लिए मल विसर्जन एक ऐच्छिक क्रिया है।

अर्थात् अपनी इच्छा से मल विसर्जन और उसे रोकने की क्रिया है।

बाह्य गुदीय संकोचिनी को संकुचित करके मल निष्कासन को रोका जा सकता है।

यदि मल त्याग नहीं करने का मन बना लिया जाए तो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र द्वारा आने वाले तंत्रिका आवेग बाह्य गुदीय संकोचिनी के कंकालीय पेशी तंतुओं को कसकर बन्द कर देते हैं।

मेरुदण्ड के आवेग द्वारा मलाशय व सिग्मोइड कॉलन के शिथिलीकरण से गुदीय भित्ति का तनाव कम हो जाता है।

खिंचाव पैदा करने वाले तांत्रिक अंत (receptors) क्रियाशील नहीं हो पाते।

मानव मल या शौच विसर्जन को स्वेच्छा से रोकने पर मलाशय भित्तियां (Rectum Walls) मल में उपस्थित जल को लगातार सोखती रहती हैं जिससे कब्ज़ (constipation) हो सकती है।

शिशुओं (1 या 2 वर्ष से छोटे) में मल विसर्जन ऐच्छिक नियंत्रण द्वारा नहीं बल्कि प्रतिवर्त क्रिया द्वारा अपने आप हो जाता है।

इसका कारण है शिशुओं में प्रेरक तांत्रिक तंत्र (motor nervous system) का पूरी तरह विकसित नहीं हो पाना।

मल का रंग

समान्यतः लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) के उत्पादों के बाइल पिगमेंट्स या बिलिरूबिन में परिवर्तन होने के कारण मानव मल या शौच का रंग भूरा होता है।

इसी प्रकार भोजन में वसा (fat) की अत्यधिकता होने पर मल का रंग हल्का पीला (pale) हो जाता है।

लौह (iron) युक्त भोजन से मल का रंग काला सा हो जाता है।

मानव मल से आने वाली गंध

मल में बदबू के कारण –

अपचित आहार के अवशिष्ट होने से,

अनवशोषित अमीनो एसीड्स से,

मृत जीवाणु एवं कोशिकीय कचरे (cell debris) के सड़ने से

दो पदार्थ – इण्डॉल (indol) व स्कैटोल (skatol) के उत्पन्न होने के कारण होती है।

इण्डॉल व स्कैटोल की अधिक मात्रा का उत्पादन भोजन में अत्यधिक प्रोभूजिन (protein) के कारण होता है।

इसी से मल की गंध और अधिक बढ़ जाती है।

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