कपालभाति
कपालभाति (Kapalbhati) पर लिखा हुआ ये लेख पढ़कर आपकी आंखें खुल जाएगी।
सभी योग के जानकार अथवा योग सीखने के इच्छुक लोग इससे तो परीचित ही हैं।
परन्तु वास्तव में क्या आप इस क्रिया के बारे में सब कुछ भली-भांति जानते हैं?
मैंने एक शोध किया और अनेक योग-शिक्षकों से मिला और कपालभाति के विषय में उनसे पूछा, एक सर्वेक्षण के नाते से।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उनमें से मुझे एक भी ऐसा योगाचार्य नहीं मिला जो पूरी तरह से इस क्रिया बारे में जानता हो।
किसी को 4 बातें पता थीं परन्तु अन्य 4 बातों से वो अनभिज्ञ थे।
किसी को 70% तक उचित जानकारी थी, परन्तु वो प्रमाणित नहीं थी। उसमें मनगढंत मिलावट थी।
सदैव स्मरण रहे, अधूरा ज्ञान विष के समान होता है, लाभ कम हानि अधिक देता है।
आइए जानते हैं कपालभाति के विषय में वो सब कुछ जो आप नहीं जानते होंगे।
हठयोग प्रदीपिका में कपालभाति (Kapalbhati)
योग विषय के विश्वसनीय ग्रंथों में से एक है हठयोग प्रदीपिका।
इसके दूसरे अध्याय के पैंतीसवें श्लोक में इस क्रिया का उल्लेख आता है।
भस्त्रावल्लोहकारस्य रेचपूरौ ससंभ्रमौ ।
कपालभातिर्विख्या कफदोषविशोषणी ।। —हठयोग प्रदीपिका 2.35
भाषार्थ
लुहार की धौंकनी के समान शीघ्रता और झटके से सांस को नाक के रस्ते भीतर-बाहर करने वाली और कफ दोष का नाश करने वाली ये क्रिया योगशास्त्र में कपालभाति नाम से विख्यात है।
क्या कपालभाति (Kapalbhati) कोई प्राणयाम है ?
षट्कर्मों के क्रम में सबसे अंतिम व छठे स्थान पर इसका वर्णन मिलता है।
ये प्राणायाम की श्रंखला में सर्वप्रथम किये जाने वाले बाह्य प्राणयाम से ठीक पहले की क्रिया है।
बाह्य प्राणायाम को जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
अतः ग्रंथों व ऋषियों के अनुसार यह एक शुद्धि की क्रिया है।
जैसे अन्य 5 षट्कर्म हैं वैसे ही छठा है ये क्रिया।
परन्तु अब आधुनिक योग पद्धति में परिवर्तन हुआ है।
वर्तमान योग शैली में आचार्यों ने कपालभाति को शुद्धि क्रिया एवं प्रणायाम दोनों श्रेणी के अंतर्गत मान लिया है ।
वास्तव में क्या है कपालभाति ?
घेरण्ड संहिता में कपालभाति को ही भालभाति (bhalbhati) के नाम से बताया गया है।
कपाल और भाल का अर्थ है खोपड़ी या मस्तिष्क कोटर या मस्तक,
भाति का अर्थ है प्रकाश, तेज, आभा, ज्योति, दीप्ति, आदि।
अंग्रेज़ी में इसे Frontal Brain Cleaning कहते हैं।
यह प्राणयाम की ऐसी तकनीक है जो सम्पूर्ण मस्तिष्क को ऊर्जा प्रदान करती है।
ये हमें सूक्ष्म बोध कराने वाले हमारे सुशुप्त केंद्रों को जागृत करती है ।
ध्यान से समझें तो ये भस्त्रिका प्राणायाम से मिलती जुलती क्रिया है।
भस्त्रिका में सांस के भीतर-बाहर आने जाने वाली पूरक – रेचक दोनों क्रियाओं पर बल देते हैं।
परन्तु कपालभाति में सांस को बाहर फेंकते रहने पर बल दिया जाता है।
सामान्य व्यक्ति सामान्य दैनिक चर्या में सांस भीतर लेने का ही आभास करता है।
लेकिन कपालभाति में इसकी विपरीत क्रिया होती है, सांस छोड़ने पर ध्यान केंद्रित रहता है।
सांस ऐसे बाहर छोड़नी है जैसे श्लोक में बताया है लुहार की धौंकनी की तरह।
लुहार की धौंकनी और कपालभाति
लोहे का कार्य करने वाले लुहार को अंगारों में अग्नि प्रज्वलित रखनी पड़ती है।
जिसके लिए वो बार बार जंजीर से धौंकनी देता है और सुलगते अंगारों में अग्नि वायु के साथ क्षणिक प्रगट होती है और फिर अदृश्य हो जाती है।
अग्नि जैसे ही झटके से प्रकट होती है तो एक वायु वेग की सरसरी ध्वनि उत्पन्न होती है।
इसी प्रकार हमारी नाक से जब वायु झटके से निकलती है तो ऐसी ही आवाज़ आती है।
इसे समझने हेतु कभी भट्टी, गॅस-चूल्हा या अलाव में सुलगती हुई लकड़ियों या अंगारों में फूंक मारकर अग्नि प्रज्वलित करके देखें।
तब जो अग्नि से ध्वनि उत्पन्न हो वैसी ही लुहार की धौंकनी से होती है और यही ध्वनि इस क्रिया में होनी चाहिए।
योग ग्रंथों के आधार पर कपालभाति तीन प्रकार की होती है।
- व्यात्क्रम कपालभाति
- व्युत्क्रम कपालभाति
- शीतक्रम कपालभाति
आगे के लेखों में हम जानेंगे कपालभाति के सभी प्रकार और उनकी विधियों के बारे में।