You are currently viewing yogic sukshma vyayama

yogic sukshma vyayama

जानिए योग परमपरा में किसे कहते हैं यौगिक सूक्ष्म व्यायाम

यौगिक सूक्ष्म व्यायाम  yogic sukshma vyayam एक बड़ी ही प्रभावी व्यायाम पद्धति है।

हमारे प्राचीन आर्यावर्त के ऋषि मुनियों द्वारा विकसित योग परम्परा में विभिन्न आसन, व्यायाम, क्रियाएं व मुद्राएं वर्णित हैं जिनको करने से पूर्व आवश्यक रूप से यौगिक सूक्ष्म व्यायाम  किये जाते हैं।

हमारे शरीर के हड्डियों के जोड़ों, नसों व मांसपेशियों के साथ ही प्राणों के अवरोध को खोलने हेतु श्वासोच्छ्वास (सांस लेने-छोड़ने) के माध्यम से भीतर के अंग-प्रत्यंगों पर ध्यान लगाते हुए क्रिया करने को यौगिक सूक्ष्म व्यायाम कहते हैं।

यौगिक सूक्ष्म व्यायाम 1 (yogic sukshma vyayam)

क्या है यौगिक सूक्ष्म व्यायाम (Yogic sukshma vyayam) और इसके अन्य नाम

यौगिक सूक्ष्म व्यायाम  को योग-जगत की भाषा की शब्दावली में यौगिक सूक्ष्म क्रिया भी बोल सकते हैं।

योगासन के नियम सिद्धांतों के अनुसार शरीर के भीतर रक्तशिराओं, रक्तधमनियों व रक्तवाहिनियों की शुद्धि, आंख, नाक, कान, गले, हृदय, फेंफड़े, आंतें, गुर्दे, यकृत, आदि अंगों की शुद्धि व मालिश के साथ– साथ उपास्थि (cartilage) एवं अस्थिबन्ध (ligament) को सदैव सुगठित, सुचारू व सुदृढ़ बनाए रखने हेतु कुछ सूक्ष्म क्रियाएँ निर्देशित हैं, उन्हीं को यौगिक सूक्ष्म क्रिया (Subtle Yoga Exercise) कहा जाता है।

परन्तु कोई भी शारीरिक क्रिया अथवा विशेष अभ्यास प्रारम्भ करने से पूर्व जिस जगदीश्वर ने यह सम्पूर्ण सृष्टि व शरीर प्रदान किए हमें, उस प्रभु से प्रार्थना करना परम् आवश्यक है।

हमारे पिछले लेख वेदविदयोग प्रार्थना में मानव-शरीर के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग के निरोगी, ऊर्जावान एवं बलिष्ठ रहने हेतु यौगिक प्रार्थना को विस्तार से विधिवत् बताया गया है।

यौगिक सूक्ष्म व्यायाम (yogic sukshma vyayama)

क्या अंतर है यौगिक सूक्ष्म व्यायाम और यौगिक स्थूल व्यायाम में?

यौगिक स्थूल व्यायाम में मुख्यतः शरीर के बाहरी हिस्सों (हाथ, पैर, पीठ, पेट, वक्ष, कलाई, कोहनी, गर्दन, कमर, घुटने, टखने, पंजे, आदि ) पर आसनों और अन्य योग-व्यायाम के माध्यम से विशेष बल दिया जाता है।

परंतु यौगिक सूक्ष्म व्यायाम  की पद्धति में शारीरिक व्यायाम पर कम बल दिया जाता है।

इसमें मुख्यतः  श्वास – प्रश्वास पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

शरीर में भीतरी आंदोलन करके सुषुप्त पड़ी हुई आंतरिक शक्तियों को जागृत करना ही इसका मुख्य उद्देश्य होता है।

इससे हमारे शरीर के भीतर के सब अंग-प्रत्यंगों को पर्याप्त मात्रा में बल मिलता है।

उनकी मालिश होती है और उसी से सम्पूर्ण शरीर के तंत्र में प्राण का प्रवाह बढ़ने लगता है।

जिससे प्रतिरोधक क्षमता अपनी सेना तैयार करके सब विषैले अवयवों को बाहर फेंकने का कार्य करती है।

उससे शुद्धता और आरोग्यता प्राप्त होती है।

संक्षिप्त में कहें तो इससे हमारी जीवनी ऊर्जा बढ़ जाती है और शतायु प्राप्त होती है।

यौगिक सूक्ष्म व्यायाम (yogic sukshma vyayama)

इससे योगासन करने में मिलती है सरलता

योगासन करने के पूर्व साधक को यौगिक सूक्ष्म क्रियाएं  कर लेनी चाहियें।
इससे आसन करने में सरलता होने लगती है।

शरीर की मांसपेशियां और हड्डियाँ पहले की तुलना में अल्प शक्ति से ही खिंचने व मुड़ने लगती हैं।

यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि इन अष्टांगों में सिद्धि मिलने लगती है।

अगले लेखों में क्रमशः सभी ४८ यौगिक सूक्ष्म क्रियाओं का वर्णन बताया जाएगा।

Leave a Reply