मंत्र क्या है ?
मंत्र के अनेक शाब्दिक अर्थ और वास्तव में मंत्र क्या है का विधिवत् वर्णन वैदिक व्याकरण से लेकर हिंदी व्याकरण तक में वर्णित है।
किसी वाक्य, श्लोक एवं सूक्त जैसी रचनाओं में मंत्र शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न अर्थ में हो सकता है।
यदि किसी को केवल एक ही अर्थ अथवा आधा अधूरा अर्थ ही ज्ञात होगा तो अर्थ का अनर्थ ही होगा और कुछ का कुछ समझ लिया जाएगा।
वर्तमान में मंत्र क्या है, इस शब्द, क्रिया और विषय के अर्थ, विधि एवं व्याख्यान मनगढ़ंत बताए जा रहे हैं।
व्याकरण से पृथक और वेद-विरुद्ध रीति से बताए व पढ़ाए जा रहे हैं।
इसका परिणाम और चलन चिंताजनक और भ्रमित करने वाला बन चुका है।
लोग मंत्र को लेकर केवल अंधविश्वासी चमत्कारों के चक्कर में जाने कौनसे मायाजाल में फंस रहे हैं।
तो आइये, जानते-समझते हैं कि वास्तव में व्याकरण के आधार और भावार्थ के परिपेक्ष में ‘मंत्र’ शब्द के क्या-क्या अर्थ निकल कर आ सकते हैं।
इस लेख में हम जानेंगे कि वैदिक व्याकरण के अनुसार एवं हमारे शोधकर्ता ऋषि-मुनियों की अविरल साधना व तपस्या से रचित उपनिषदों में मंत्र क्या है ।
इसके क्या प्रयोजन, उद्देश्य, प्रयोग, लाभ, हानि, इत्यादि हैं।
तो लेख को पूरा पढ़ते हुए, समझिए।
अंततः मंत्र क्या है और इसके प्रमाण, अर्थ, जप-विधि और प्रयोग क्या हैं ?
- मंत्र क्या है, मंत्र का शाब्दिक अर्थ क्या है?
- मंत्र का प्रयोग कैसे और क्यों करें?
- क्या मंत्र वास्तव में ही कार्य करता है? मंत्र क्या-क्या और कैसे कार्य करता है?
- जानिए मंत्र से होने वाले लाभ
- क्या हैं मंत्र से होने वाली हानि
- मंत्र जप क्या है ?
- क्या मंत्र जप से सिद्धि व सफलता प्राप्त होती है?
- मंत्र जप से चमत्कार सम्भव है या नहीं?
- वास्तव में मंत्र किसे जपना और क्यों जपना चाहिए?
- मंत्र अंधविश्वास है या पूर्ण रूपेण वैज्ञानिक?
जानिए मंत्र क्या है ? और मंत्र का शाब्दिक अर्थ क्या है?
मंत्र शब्द हमारे मन और मस्तिष्क में बनने वाले विचार और उस विचार की बार-बार पुनरावृत्ति होने से बनने वाली मंत्रणा या चिन्तन-मनन से स्पंदित एक लक्ष्य की ओर अग्रसित होते हुए प्रबल मानसिक प्रवाह को बोलते हैं। मंत्र का शाब्दिक अर्थ है- मंत्रणा, गूढ़ अथवा गोपनीय, इसके अतिरिक्त मनन भी मंत्र का ही एक अर्थ है। मंत्र के लिए कहा गया है- ‘मनानात् त्रायते इति मन्त्रः’ – अर्थात् मन पर जिससे नियंत्रण किया जा सके, उसे मंत्र कहा जाता है। मंत्र के अन्य शाब्दिक अर्थों में ध्वनि, कम्पन और रहस्य शब्द भी भाव व पर्याय लिए हुए हैं।
क्या है मंत्र का प्रयोग क्यों और कैसे करें?
मंत्र का प्रयोग सदैव तीन कारणों से ही करना चाहिए-
१. जब आपको मन पर नियंत्रण करना हो या मनोबल बढ़ाना हो या स्मरण शक्ति बढ़ानी हो।
२. किसी निश्चित लक्ष्य को साधने हेतु।
३. सबसे महत्वपूर्ण- परमेश्वर की स्तुति-उपासना हेतु।
मंत्र का प्रयोग अपने मन पर पूर्ण वश करके अपने आचरण, स्वभाव व व्यवहार पर भी नियंत्रण एवं यथोचित परिवर्तन करके दुर्गम पथ पर चलते हुए सरलता से और सहजता से लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु किया जा सकता है। परमात्मा के नाम जप से लेकर ईश्वर की स्तुति, उपासना, आदि मोक्ष प्राप्त करने तक के प्रयोजन में मंत्र का प्रयोग बड़ा कारगर व उपयोगी सिद्ध हो सकता है। मंत्र को प्रयोग में लाने के लिए पहले मंत्र के एक-एक अक्षर व शब्द को धीमी गति से सःस्वर उच्चारण करें। उसके पश्चात् उसी धीमी गति से उच्चारण करते समय मंत्र के प्रत्येक अक्षर व शब्द का अर्थ-चिंतन अवश्य ही करें, अन्यथा केवल शारीरिक जिह्वा आदि कुछ ज्ञानेंद्रियों व अन्य अंग प्रत्यंगों पर ही प्रभाव पड़कर रह जाएगा, बिना अर्थ के चिंतन के मंत्र-जप रट्टू तोता बना सकता है परन्तु उसके परम् उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर सकता।
आइए मंत्र उच्चारण और उसे प्रयोग में लाने की विधि हम इस ‘वेदविदयोग’ के महत्वपूर्ण लेख में विधिवत् समझें–
१. शांत चित्त होकर, शांत वातावरण में, एक दरी या आसन बिछाकर, सुखासन में बैठ जाएं, केवल सुखासन में।
२. एक दीपक को इतनी ऊंचाई पर अपने से लगभग 1 मीटर की दूरी पर उतनी ऊंचाई पर रखें जितनी ऊंचाई पर नीचे आसन पर बैठने के पश्चात आपकी आंखें हों।
ध्यान रहे दीपक की लौ को हवा न लगे। बन्द स्थान होना आवश्यक है।
३.अब दीपक की जलती लौ को तब तक निहारें जब तक आंखों से आंसू ना निकलें।
जितनी देर लौ को देखा उतनी ही देर आंखें बंद करके विश्राम दें आंखों को।
४.अब उस दीपक को देखकर कोई भी संकल्पित मंत्र का उच्चारण करते हुए, उसके शब्दों के अर्थ का चिन्तन करें।
मंत्र वास्तव में केवल वेद का ही होना चाहिए, यदि आपका लक्ष्य ईश्वरोपासना है तो।
जैसे:- ओमकार, गायत्री मंत्र, महामृत्युमजय मंत्र, आदि।
यदि सभी प्रकार के लाभ चाहिएं तो प्रणव ओ३म् से एवं गायत्री मंत्र से श्रेष्ठ कुछ भी, कहीं भी जपने योग्य वस्तु नहीं है।
अन्य सब मनगढ़ंत मंत्र हैं और व्यर्थ के तंत्र और तांत्रिक विद्या आदि के भ्रम, मायाजाल और आडम्बर हैं।
५. मंत्र को सर्वप्रथम कुछ देर धीमी गति से वाणी से उच्चारित करके जपना चाहिए, तत्पश्चात होठों से फुसफुसाकर।
जब मंत्र के अर्थ चिंतन में मन रमने लगे तब मौन होकर बिना मुख के किसी भी भाग को हिलाए मानसिक जप करना।
केवल मन में मंत्र के शब्द और उनका अर्थ चिंतन करना चाहिए।
इससे उस मंत्र में वर्णित और निहित अर्थ के मनन से हम वैसे ही बनते चले जाते हैं- गुण, कर्म और स्वभाव से।
क्या मंत्र वास्तव में कार्य करता है?
मन में प्रश्न उठता है कि मंत्र क्या है ? मंत्र अपने अर्थ के अनुसार निश्चित ही कार्य करता है, इस बात को समझने हेतु मंत्र-विज्ञान को भी ठीक प्रकार से समझना होगा, तब ही मंत्र क्या है ये ठीक से ज्ञात हो सकेगा। मानव अपने जीवन में प्रत्येक क्षण कुछ न कुछ सोच-विचार करता ही है, ये मस्तिष्क का कर्तव्य है और मन का स्वभाव है और इसका मनुष्य के मन, वाणी और कर्म पर सीधा प्रभाव पड़ता है, चाहे एक स्वप्न ही क्यों न हो, उसका प्रभाव हम पर अगले पूरे दिवस रहता है। मन में हम जैसा विचार बार-बार पनपाते हैं और उस पर बने रहते हैं तो प्रभाव निश्चित ही होता है। हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बनते हैं, पूरी तरह नहीं भी तो बहुतायात में।
मंत्र क्या-क्या और कैसे कार्य करता है?
अब मंत्र क्या है और कैसे कार्य करता है इस बिन्दु को जानने का प्रयास करते हैं। मंत्र मानसिक व शारीरिक सभी कर्मों को परिवर्तित करके अपने इच्छित रूप स्वरूप के अनुसार ढालने का कार्य करता है। मंत्र अग्नि की भांति कार्य करता है, जैसे अग्नि में भेदक क्षमता होती है जो किसी भी पदार्थ के गुण-स्वभाव को परिवर्तित करके उसमें जो चाहे वो मिला सकती है। मंत्र क्या है ? मंत्र हमारे मन के ठीक बाद मस्तिष्क पर भी बलवती होकर प्रभाव छोड़ता है और मस्तिष्क के ही नियंत्रण के अधीन यह मानव शरीर उसी क्रम में प्रभावित होते हुए परिवर्तन पा सकता है। मंत्र मनुष्य शरीर की एक एक कोशिका से लेकर सप्तधातु तक को प्रभावित करता है, मंत्र आपको अच्छे से बुरा, बुरे से अच्छा भी बना सकता है। हमारे शरीर में नसों के साथ-साथ नाड़ियों का भी ठीक वैसा ही जाल और ताना-बाना बुना हुआ है।
नाड़ियों पर मंत्र का प्रभाव
नसें हमारे शरीर में विद्युत के तार की तरह होती हैं और नाड़ियां उन तारों में प्रवाहित होने वाला विद्युत व तरंगें होती हैं। इन्हीं नाड़ियों में मंत्र के उच्चारण और अर्थ चिन्तन से एक स्पंदन और घर्षण होता है, जिससे हमारे शरीर का स्वास्थ्य, रोग-प्रतिरोधक क्षमता, आदि सब प्रभावित होते हैं। मंत्र यदि वेद-उपनिषद और दर्शनों में बताई उचित वैदिक रीति-नीति से और ऋषियों के द्वारा निशदिन ईश्वर स्तुति-उपासना हेतु चलाई संध्या- हवन आदि के साथ जपे जाएं तो निश्चित ही सूक्ष्म लाभ देते हैं जो शारीरिक बन जाता है। अब आप मंत्र क्या है विषय को और ढंग से समझने के लिए लालायित हो उठे होंगे तो आगे के लेखों में इसके अन्य भागों पर विश्लेषण देंगे ।
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