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Actual meaning of Gayatri Mantra

गायत्री मन्त्र का वास्तविक अर्थ

इस लेख में गायत्री मन्त्र का वास्तविक अर्थ आपके समक्ष रखा गया है।

साधारण हिन्दू – सनातनी जन मानस में गायत्री मन्त्र और छन्द के विषय में कुछ न कुछ आधी-अधूरी जानकारी व्याप्त है ही।

गायत्री मन्त्र के अर्थ और भावार्थ भी विभिन्न मठ व संप्रदायों में भिन्न किये हुए हैं।

किसी ने गायत्री मन्त्र को माता बताया, किसी ने श्रीकृष्ण तो किसी ने सूर्य बताया है।

अधिक्तम् संप्रदायों व पंथों में गायत्री मंत्र को चमत्कार और जादू टोने करने वाला बताया है।

जिसको जैसा लगा उसने वैसा ही मनगढ़न्त अर्थ व भावार्थ बना लिया।

और फिर वही मूढ़जनों के रचे अर्थ से वैदिक मंत्रों का अनर्थ भी होता चला गया।

क्योंकि सामान्य जन में गुरु को ही ईश्वर बताकर अपनी बात को मनवाने का चलन चल पड़ा।

गायत्री मन्त्र का वास्तविक अर्थ 1

कैसे लुप्त हुआ गायत्री मन्त्र का वास्तविक अर्थ

वर्तमान युग में मनुष्य को न ही योग्य गुरु चाहिए न ईश्वर।

उसे केवल वही बात प्रिय व सत्य लगती है जिससे उसके अपने स्वार्थ की पूर्ति हो।

अपनी इसी स्वार्थ और भोग की पूर्ति हो जाने की आशा में मानव गुरु के बाद गुरु बनाता गया।

जिससे कहीं किसी के आशीर्वाद से कोई चमत्कार हो जाए।

अतः अशिक्षित, अवैदिक और मिथ्याचारी भी वाकपटुता के कौशल से गुरु पद पाते गए।

अथवा उन्होने स्वयं को ही महागुरु या १००८ घोषित कर लिया।

परंतु उनके पास समाज को देने के लिए केवल आडम्बर ही था, कोई वैदिक शिक्षा नहीं थी।

तो गायत्री का वैदिक स्वरूप भला कैसे जन-जन तक पहुंचता?

उन्हें तो ये तक स्पष्ट न हुआ कि गायत्री मंत्र में २४ नहीं २३ अक्षर ही हैं

जानिए गायत्री मन्त्र का असली अर्थ

ओ३म् भूर्भु: स्व: । तत्स॑वि॒तुर्वरे॑ण्यं॒ । भर्गो’ दे॒वस्य॑ धीमहि । धियो॒ यो न॑: प्रचो॒दया॑त् ॥{यजु:० ३६/३}

ओ३म् क्या है? परमात्मा का निज अथवा मुख्य नाम है।

परमात्मा के अनगिनत नाम इस एक ‘ओ३म्’ से निकले और बने हैं।

‘ओ३म्’ शब्द के अनेक अर्थ होते हैं।

इस एक ओंकार में सम्पूर्ण सृष्टि समाई हुई है।

‘ओ३म्’ से कैसे ध्यान करें? ‘ओ३म्’ का जाप कैसे करें?

इन सब बिन्दुओं का उल्लेख विस्तार से एक अन्य लेख में कर दिया है।

‘ओ३म्’ का मुख्य अर्थ होता है- ‘सर्वरक्षक’ । सब ओर से रक्षा करने वाला ।

परमात्मा कैसे रक्षा करता है?

परमात्मा रक्षा अवश्य ही करता है।

परंतु वैसे नहीं जैसे शंख, चक्र गदा, पद्म लेकर टीवी धारावाहिकों में दिखाया जाता है।  

गायत्री मंत्र का वास्तविक अर्थ

गायत्री मन्त्र की महाव्याहृतियों का अर्थ

तैत्तिरीय आरण्यक के सातवें प्रपाठक के पांचवें अनुवाक् में गायत्री मन्त्र की तीन महाव्याहृतियों का अर्थ मिलता है।

यहाँ धातु के आधार पर होने वाला अर्थ – धात्वर्थ दिया गया है।

इससे वैदिक व्याकरण के आधार पर गायत्री मंत्र का प्रामाणिक अर्थ मिलेगा, न की मनगढ़ंत अर्थ।

१॰ भू: भूरीति वै प्राण:’, ‘य: प्राणयति चराsचरं जगत् स भू: स्वयम्भूरीश्वर: अर्थात् जो सब जगत् के जीवन का आधार, प्राण से भी प्रिय और स्वयम्भू है, उस प्राण का वाचक होकर भू: परमेश्वर का नाम है।

२॰ भुव: भुवरित्यापन:’, य: सर्वं दु:खमपानयति सोsपान:अर्थात् जो सब दुखों से रहित है, जिसके संग से जीव सब दु:खों से छूट जाते हैं, अतः उस परमेश्वर का नाम ‘भुव:है।

३॰ स्व: स्वरिति व्यान:’, ‘यो विविधं जगद् व्यानयति व्याप्नोति स व्यान:अर्थात् जो नानाविध जगत् में व्यापक होकर सबको धारण कर रहा है, अतः उस परमेश्वर का नामस्व:है।

गायत्री के प्रथम पाद (चरण) का अर्थ

  • तत् – उसी परमात्मा, उस परमेश्वर,
  • सवितु: य: सुनोत्युत्पादयति सर्वं जगत् स सविता तस्य अर्थात् जो सकल जगत् का उत्पादक और सर्व ऐश्वर्य का प्रदाता है।
  • वरेण्यं वर्तुमर्हम्अर्थात् स्वीकार करने योग्य, ग्रहण करने योग्य, अति श्रेष्ठ

गायत्री के द्वितीय पाद (चरण) का अर्थ

  • भर्ग: शुद्धरूपम्अर्थात् शुद्धस्वरूप और पवित्र करने वाला चेतन ब्रह्मस्वरूप।
  • देवस्य: यो दीव्यति दीव्यते वा स देव: अर्थात् जो सर्वसुखों को देनेवाला है और जिसकी प्राप्ति की कामना सब करते हैं, वह हमारा देव।
  • धीमहि धरेमहि अर्थात् धारण करें।

गायत्री के तृतीय पाद (चरण) का अर्थ

  • धिय: – बुद्धियों को (यहाँ धी: एकवचन होकर धिय: होकर बहुवचन बना है, अतः बुद्धि नहीं बुद्धियों होगा।
  • य: – जो सविता देव परमात्मा अथवा वही जगदीश्वर
  • न: – हमारी
  • प्रचोदयात् – प्रेरणा दे, प्रेरित करे अर्थात् बुरे कर्मों से छुड़कर अछे कर्मों में प्रवृत्त करे।
भावार्थ –

उस सर्वरक्षक, प्राणस्वरूप, दु:खनाशक, सुखस्वरुप, सर्वव्यापक, सकल जगत् के उत्पादक, सब ऐश्वर्यों को देनेवाले, ग्रहण करने योग्य अति श्रेष्ठ, शुद्धस्वरूप, पापनाशक, सूर्य के समान प्रकाशक तेजस्वी हमारे उस देव के तेज को हम धारण करें, उसी का ध्यान करें, वही जगदीश्वर हमारी बुद्धियों को सद्मार्ग कि ओर प्रेरित करे।

हमारे अन्य लेखों में आपको गायत्री मंत्र के विषय में जानने को अन्य महत्वपूर्ण ज्ञानवर्धक जानकारियाँ मिलेंगी।

गायत्री मंत्र क्यों सबसे महान मंत्र है?

क्यों गायत्री मंत्र महामंत्र है?

केवल गायत्री मंत्र ही ऐसा मंत्र है जिसका वर्णन चारों वेदों में आता है।

गायत्री मंत्र का अभद्र अर्थ

किसी द्वेषी ने बिना ज्ञान व विद्या लिए ही गायत्री मंत्र का वास्तविक अर्थ करने के स्थान पर जानबूझकर अभद्र अर्थ कर दिया।

बिना व्याकरण का प्रमाण दिये यूं ही कुछ भी लिख दिया।

आप ऊपर दिये गए संस्कृत व्याकरण के अर्थ से तुलना करके स्वयं अंकलन कीजिए।  

Pratibhekdiary.com नाम से एक वैबसाइट है जो वामपंथी लेखकों द्वारा चलायी जाती है। उसी साइट पर यह गायत्री मंत्र का अभद्र अर्थ किसी रोहित शर्मा नाम के ब्लॉगर ने किया है –

 = प्रणव

भूर = भूमि पर

भवः = आसीन / निरापद हो जाना /लेट जाना [(भूर्भुवः भूमि पर)

स्व = अपने आपको

तत् = उस

सवित = अग्नि के समान तेज, कान्तियुक्त की

उर = भुजाओं में

वरण्यं = वरण करना, एक दूसरे के/ एकाकार हो जाना।

भोः देवस्य = भार्गवर्षि / विप्र (ब्राहमण) के लिय।

धीमहि = ध्यानस्थ होना उसके साथ एक रूप होना।

(धी = ध्यान करना)

(महि = धरा, धरती, धरणी, धारिणी के/से सम्बद्ध होना)।

धियो = उनके प्रति/मन ही मन मे ध्यान कर/मुग्ध हो जाना/ भावावेश क्षमता को तीव्रता से प्रेरित करना।

योनः = योनि/ स्त्री जननांग।

प्र = [उपसर्ग] दूसरों के सन्मुख होना / आगे करना या होना समर्पित/ समर्पण करना.

प्रचोदयात् = मॅथन / मैथुन / सहवास / समागम  सन्सर्ग के हेतु

सरलार्थ : ‘हे देवी (गायत्री) , भू पर आसीन होते (लेटते) हुए , उस अग्निमय और कान्तियुक्त सवितदेव के समान तेज भृगु (ब्राहमण) की भुजाओं में एकाकार होकर मन ही मन में उन्ही के प्रति भावमय होकर उनको धारण कर लो और पूर्ण क्षमता से अपनी योनि को संभोग (मैथुन) हेतु उन्हें समर्पित कर दो।“

इसमें किसी भी शब्द के अनुवाद का कोई व्याकरण आधार नहीं।

क्यों किया गया गायत्री मंत्र का अश्लील अर्थ?

कुछ ऐसे भी लोग हैं जो सदैव बिना प्रमाण वेदों, महाभारत, रामायण, मनुस्मृति आदि ग्रन्थों को कपोल कल्पना सिद्ध करने में जुटे रहते है।

आर्यों को बाहर से आनेवाले लुटेरे बताते हैं।

उन्होने बिना पढे, समझे, बिना जाँचे ही केवल विरोध के उद्देश्य से गायत्री मंत्र का अश्लीलता भरा अभद्र अर्थ अनुवाद किया।

ऐसे मिथ्याचारी अनुवाद को उन्होने अपनी कुछ वैबसाइट पर जमकर प्रचारित किया।

लेकिन क्योंकि उन्हें व्याकरण का तनिक भी ज्ञान नहीं होने से कोई शिशु भी समझ सकता है कि गायत्री मंत्र का ये अभद्र अर्थ केवल ईर्ष्या-द्वेष के भाव से मनगढ़ंत लिखा गया है। 

उन्होने संस्कृत व्याकरण तो दूर की बात है, कभी हिन्दी व्याकरण भी नहीं पढ़ी।

वास्तव में उनका एक ही लक्ष्य है, और वो है वैदिक अथवा सनातन धर्म के प्रत्येक ग्रंथ को मिथ्या सिद्ध करना।

पाठकों से निवेदन

पाठकों से अनुरोध है वे अनुवाद को सदैव वहीं से ग्रहण करें जहां व्याकरण की युक्ति और संदर्भ दिया हुआ हो। क्योंकि कोई भी भाषा है तो उसका आधार व्याकरण ही होती है। जो व्याकरण के आधार पर अर्थ, अनुवाद व भावार्थ न करे तो उसे पाठक व श्रोता को ग्रहण नहीं करना चाहिए।

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