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सर्वांगासन

यदि सर्वांगासन (sarvangasana) के विषय में आप हर एक बिंदु को जानना चाहते हैं तो आगे पूरा लेख पढ़िए।

यूं तो सर्वांगासन बहुत ही प्रसिद्ध और जाना माना आसन है।

परन्तु फिर भी कुछ आवश्यक बिंदुओं को लोग भूल ही जाते हैं।

हम यहां सभी बिंदुओं को विस्तार से समझाएंगे।

क्या है सर्वांगासन (Sarvangasana) का अर्थ

ये शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है।

  1. सर्व का अर्थ है – सम्पूर्ण, सारा, पूरा
  2. अंग का अर्थ है – हिस्सा, भाग, शरीर का हिस्सा या भाग
  3. आसन – योग क्रिया की स्थिर स्थिति

अर्थात् एक ऐसा आसन जो शरीर के सभी अंगों के लिए बना है। सर्वांगासन एक ऐसी यौगिक मुद्रा है जिसमें शरीर के प्रत्येक अंग को व्यायाम और लाभ प्राप्त होता है।

आगे के लेखों में

  • सर्वांगासन के लिए सावधानियां
  • क्या है सर्वांगासन का विज्ञान
  • सर्वांगासन के लाभ
  • सर्वांगासन से हानि

इन सभी विषय-बिंदुओं पर जानकारी साझा की जाएगी।

सर्वांगासन sarvangasana 2

सर्वांगासन (Sarvangasana) के लिए तैयारी

  • प्रातः अथवा सायं खाली पेट ही इसे करें।
  • योग-आसन प्रारम्भ करने से पूर्व परमेश्वर से प्रार्थना अथवा वेदविदयोग प्रार्थना अवश्य ही करें।
  • यदि निवृत्त होने का मन हो तो एक बार पेट साफ होने के पश्चात् ही इसे करें।
  • ध्यान रहे, सर्वांगासन करने से पूर्व शरीर को थोड़ा सा सूक्ष्म व्यायाम और स्थूल व्यायाम करके खोल लें।
  • विशेषकर ग्रीवाशक्तिविकासक, भुजाशक्ति विकासक, जानूशक्तिविकासक सूक्ष्म व्यायाम अवश्य कर लें।
  • सर्वांगासन करने से पहले अर्ध-हलासन का अभ्यास कर निपुण होना आवश्यक है।
  • और फिर अंत में विपरीत करणी का अभ्यास करके तब सर्वांगासन करने का प्रयास करना ही उचित होता है।

विपरीत करणी क्या है जानने के लिए यहां क्लिक करें।

सर्वांगासन की सम्पूर्ण विधि

  1. शांत, खुले आंगन, छत, बगीचे या हवादार कमरे में धरती पर एक लम्बी दरी बिछा लें।
  2. जिस सतह पर दरी बिछाई जाए वो सतह सपाट हो सीधी हो, खड्डेदार या ऊंची नीची न हो।
  3. यही बिंदु घास के मैदान में भी ध्यान रखना है, की वहां गड्ढे न हों।
  4. अन्यथा आपकी पसलियों में और नसों में दर्द या खिंचाव हो सकता है।
  5. दरी पर लम्बवत् सीधे दण्डासन में बैठ जाएं। दण्डासन क्या है जानने के लिए यहां क्लिक करें।
  6. दण्डासन की स्थिति से पीठ के बल सीधे लेट जाएं।
  7. दोनों हाथों की कलाइयों को फर्श की तरफ घुमाकर लम्बवत् कमर के पास रखें।
  8. अब सांस भर कर पहले अर्ध हलासन करते हुए पैर उठाएं। कुछ क्षण रुकें।
  9. तत्पश्चात् विपरीत करणी  करें और कुछ क्षण रुकें।
  10. सांस को सामान्य लय से ही चलने दें।
  11. विपरीत करणी की स्थिति में ही अब पैरों को और ऊपर खींचें।
  12. कमर व पेट को सीधा करते हुए थोड़ी की तरफ धकेलें।
  13. अब जो कमर पर सहारे के लिए दोनों हथेलियां लगाई हुईं थीं उनको हटाकर, उल्टा करके ज़मीन के लम्बवत् रख दें।
  14. शरीर की गर्दन और कंधे के अतिरिक्त सिर्फ हाथ ही ज़मीन को स्पर्श करते हैं। अन्य कोई भाग नहीं।
  15. सम्पूर्ण शरीर का भार कंधों पर और गर्दन के पीछे वाले हिस्से पर पड़ना चाहिए।
  16. हाथों को नीचे सीधा पसारकर उनके बल के सहारे भी हमें पैरों और कमर को ऊपर तानकर रखना चाहिए।
  17. सांस सामान्य रूप से चलेगी।
  18. प्रारम्भ में 10-20-30 सेकण्ड तक इसी आसन स्थिति में रुके रहने का अभ्यास करना भी कठिन लगता है।
  19. परन्तु कुछ दिवस सावधानी और निरंतर अभ्यास से ये समयावधि बढ़कर 2 से 5 मिनट बढ़ जाती है।
  20. कुछ माह पश्चात् इस आसन में स्थिर रहने की क्षमता को 30 मिनट तक भी बढ़ाया जा सकता है।

विशेष :- इस आसन को करने के पश्चात् कुछ देर खड़े रहने वाले आसन या व्यायाम अवश्य ही करें, जिससे रक्त संचार सीधा गमन करने लगे।

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