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vasant ritu me khan-paan

वसंत ऋतु में खान-पान

हमें सावधानी से वसंत ऋतु में खान-पान को संयमित और ऋतु अनुकूल बनाना चाहिए।

मार्च माह के प्रारम्भ होते ही प्रकृति में परिवर्तन प्रारम्भ होते हैं व अप्रैल तक चलते हैं।

सर्दी कम होते होते, धीरे धीरे गर्मी बढ़ने लगती है।

प्रकृति में हो रहे बदलाव के साथ साथ हमे ऋतु के ही अनुसार अपने रहन-सहन और खानपान में भी बदलाव लाना बहुत जरूरी हो जाता है।

क्योंकि परिवर्तन ही संसार का नियम है।

मार्च और अप्रैल के महीने में कैसे आपका स्वास्थ्य और आनन्द बना रहे, इसे समझते हैं।

चलिए जानते हैं बसन्त के विषय में आयुर्वेद क्या कहता है?

वेदविदयोग (vedvidyog) के ‘वसंत ऋतु में खान-पान’ लेख में आप जानेंगे: –

  • मार्च के महीने में प्रकृति और आपके शरीर में होने वाले परिवर्तन के बारे में।
  • इस महीने में कौन सी ऋतू शुरू होती है?
  • प्रयोग में लेने वाले तीन विशेष स्वाद।
  • त्यागने हेतु तीन विशेष स्वाद।
  • कुछ विशेष पेय (drinks) जिसे पीकर आप रहेंगे स्वस्थ और मस्त।
  • मार्च और अप्रैल माह में दिनचर्या व ऋतुचर्या कैसी हो?
  • एक घरेलू नुस्खा जिससे पूरे वर्ष आपका रक्त रहेगा शुद्ध और आप रहेंगे निरोग।

तो इस लेख को अंत तक पढ़िए और जानिए। वेदविदयोग (VedVidYog) में आपको मिलेंगी आयुर्वेद के बारे में सही सही जानकारियां

वसंत ऋतु में खान-पान

आयुर्वेद में बसंत ऋतु महत्व

मार्च और अप्रैल में जब रंग बिरंगे फूल एवं वृक्षों पर पुरानी पत्तियाँ झड़ कर नई पत्तियाँ दिखें तो समझना चाहिए कि बसंत ऋतु आ चुका है।

इस रुत में कुदरत में नयापन आ जाता है।

इसी ऋतु में हमारे देश में दो विशेष त्यौहार  मनाये जाते हैं – बसंत पंचमी और होली

आयुर्वेद में दक्षिण दिशा से बहने वाली हवाएं स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं।

वसंत ऋतु में दक्षिणी ध्रुव (south pole) से बहने वाली वायु  के कारण युवा ही नहीं अपितु वृद्ध और रोगी जनों में भी नया उत्साह आ जाता है।

वसंत के मौसम में बीमार क्यों होते है?

अब जानते हैं कि ऋतु वसंत में शरीर पर क्या-क्या प्रभाव पड़ते हैं।

आयुर्वेद के सिद्धहस्त ऋषि वाग्भट्ट ने अष्टांगहृदयम् आयुर्वेदिक ग्रंथ में लिखा है –

कफश्चितो हि शिशिरे वसन्तेSकार्शुतापित:

हत्वाSग्निमं कुरुते रोगनतस्तं त्वरया जयेत् ।। – अ.सू.3/18

बसंत ऋतु के मौसम में जो भी जमा हुआ कफ सूरज की गर्मी पाकर मार्च और अप्रैल के महीने में पिघलने लगता है।

जिससे कि आपके शरीर में कफ की मात्रा बढ़ जाती है और आपको कई तरह के रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।

सबसे पहला प्रभाव पड़ता है, आपकी जठराग्नि या फिर पाचन तंत्र पर।

कफ के कारण भूख कम होना और खाना पचाने की शक्ति कम होना, इस मौसम की सबसे बड़ी समस्या है।

वसंत ऋतु में होने वाले रोग

आचार्य चरक ने चरक सूत्रस्थान के छठे अध्याय के 22वें श्लोक में कहा है-

कयानि बाधते रोगस्ततः प्रकुरते बहुन:’ – (चरक सूत्रस्थान – 6/22)

अर्थात् मंदाग्नि होने से सभी तरह के कफ के रोग होने लगते हैं।

जैसे – सर्दी, खांसी, उल्टी होना, आलस बहुत आना या फैटी लिवर, थायरायड, आदि बढ़ जाते हैं।

अर्थात रोग ही रोग।

परन्तु आयुर्वेद के होते हुए आपको चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।

बसंत ऋतु में त्यागने योग्य तीन स्वाद या रस

आयुर्वेद में छः प्रकार के रस या स्वाद बताए गए हैं –

वसंत ऋतु में त्यागने योग्य तीन विशेष स्वाद
मधुर (sweet)
खट्टा (sour)
नमक (salty)

अब पहले तीन रस हैं – मीठा, खट्टा और नमक ।

ये तीनों रस मार्च-अप्रैल के महीने में आपके शरीर में कफ की मात्रा को और ज्यादा बढ़ा देंगे।

इन तीनों रसों से बचकर रहना चाहिए या एकदम हल्की और कम मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।

मीठे में जैसे गुड़, आइसक्रीम, स्वीट डिश, हलवा, इस प्रकार की चीजें। और खट्टे में टमाटर, इमली, निम्बू या सभी खट्टे अचार और नमक में नमक, नमकीन, आदि इन सभी चीजों का अल्प मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।

वसंत ऋतु में खाने वाले तीन स्वाद या रस

अब मन में ये प्रश्न उठता है कि जब मीठा, खट्टा, नमकीन सब बंद तो क्या खाएँ?

अब अन्य शेष रहे तीन स्वाद तीखा, कड़वा और कसैला इनका प्रयोग मार्च-अप्रैल के महीनों में भरपूर मात्रा में करना चाहिए। 

वसंत ऋतु में प्रयोग करने योग्य तीन विशेष स्वाद
तीखा (pungent)
कड़वा (bitter)
कसैला (astringent)

कई लोगों का मन मसालेदार, चटपटा, तीखा भोजन करने का करता है।

उनके लिए बसंत ऋतु बड़ी आनंददायक ऋतु सिद्ध होती है।

वसन्त ऋतु में तीखे, कडवे और कसैले स्वाद वाला आहार लेना चाहिए।

तीखे में –  तीखे अचार, लहसुन की चटनी, लहसुन-मिर्ची की चटनी, हींग, अज्वाइन, सोंठ, जीरा, हल्दी, और तड़का लगा हुआ मसालेदार दाल चावल आदि का प्रयोग।

कडवे में कड़वी सब्जियों में जैसे करेला, परवल, बैंगन, आदि।

कसैले में – कसैले स्वाद वाली हरड़ या फिटकरी, मेथी, आदि खाने के लिए मार्च और अप्रैल के महीने सर्वश्रेष्ठ रहते हैं।

बसंत ऋतु में खाने योग्य अन्न आदि

तवे पर भुनी या सिकी हुई चीज़ें, सिका हुआ पापड़, भुने हुए चने, मूंगफली, मटर, आदि खाएँ। कोई भी खाने की चीज़ बनाने से पहले आप उसे पांच या 10 मिनट सेंक लें फिर उसे बना कर खाएं।

इससे भोजन जल्दी हज़म होगा।

यदि आपको रोटी खानी है, तो आटे को पांच या 10 मिनट सेक लें और फिर उसकी रोटी बनाकर खाएं।

आयुर्वेद के अनुसार भी मांस आहार  करने वालों के लिए भी भुना हुआ मास खाना ही उत्तम है। 

वसंत ऋतु में पीने योग्य विशेष पेय

खाने की बात तो हो गयी परन्तु अब जानेंगें मार्च और अप्रैल के महीने में पीने योग्य तीन विशेष पेय (drink or juice) कौन से हैं? मार्च अप्रैल में क्या खाएं, क्या न खाएं इस विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे इस लेख को अवश्य पढ़ें। ऋतु वसन्त में स्वस्थ रहने के लिए तीन विशेष पेय पीना अत्यंत आवश्यक है।

1. शहद का पानी

शहद (honey) या मद  इसे आयुर्वेद में कफ कम करने वाली दवाइयों   में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

अतः वसंत ऋतु में शहद का पानी अवश्य ही पीना चाहिए।

विधि:

  • एक लीटर पानी को गर्म करके आधा कर लीजिए।
  • फिर इस पानी को ठंडा होने दीजिए।
  • इस पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर, दिन में तीन से चार बार पीना चाहिए।

लाभ: कफ का नाश, कफ़जनित रोगों  से बचाव, और मोटापा घटता है।

विशेष: कभी भी शहद को गर्म पानी के साथ ना लें। आयुर्वेद के विधान में शहद के साथ गर्म वस्तु का मेल करने से वह विष (poison) बन जाता है।

पानी के साथ शहद का प्रयोग या तो सामान्य तापमान के जल अथवा गर्म करके ठंडे किये हुए पानी के साथ ही करें।

2. सोंठ का पानी

कुछ लोग विशेष कारणों से शहद का उपयोग नहीं कर सकते।

उनके लिए सोंठ का पानी और भी कई गुणा अधिक लाभदायक होगा।

विधि:

एक लीटर पानी लेकर उसे आधा कर लीजिए।

उसे ठंडा कर लीजिये।

आप जब भी आप इस पानी को पिएं तब इसमें एक या दो चुटकी सोंठ का पाउडर मिला लीजिए।

अब दिन भर में इसे चार या पांच बार पीजीए।

लाभ: सोंठ डालकर बनाया हुआ पानी एक अनोखी दवा है।

  • कफ की बढ़ी हुई मात्रा को कम करता है।
  • नसों में अवरुद्धता (blockage) को खोलता है।
  • पाचन तंत्र को सुधारता है।
  • जठराग्नि को प्रदीप्त करके भूख को बढ़ाता है।
  • मार्च या अप्रैल के महीने में भूख कम लगना या भोजन में अरुचि होना, आदि समस्याओं  के लिए सोंठ के पानी का सेवन करना अत्यंत लाभदायक है

3. मसालेदार छाछ

बसंत में अर्थात् मार्च-अप्रैल के महीनों में भूलकर भी दही का सेवन नहीं करना चाहिए।

क्योंकि दही कफ वर्धक होने से शरीर में कफ की अधिक वृद्धि करती है।

अतः वसंत में दही का सेवन बंद करके मसालेदार छाछ का प्रयोग करना सर्वोत्तम है। आयुर्वेद के अनुसार मार्च व अप्रैल में मसालेदार छाछ पीने के अनेक लाभ बताए हैं।

विधि:

  • एक ग्लास छाछ लें।
  • अजवाइन, हींग, जीरा, हरा धनिया, काला नमक का मिश्रण बना लें।
  • इस मिश्रण का एक चम्मच छाछ में मिलाकर रोजाना दोपहर में भोजन के बाद पीना चाहिए।

लाभी: छाछ के गुणों के बारे में आयुर्वेद में  कहा गया है:

  • ये कफ व वात को कम करती है।
  • भोजन को पचाती है।
  • शरीर से विष को बाहर फेंकती है। इस मौसम में केवल छाछ नहीं बल्कि स्वादिष्ट छाछ पीजीए।

बसंत ऋतु, मार्च और अप्रैल में कैसी हो दिनचर्या?

आयुर्वेद के अनुसार वसंत ऋतु में अपनी दिनचर्या में क्या क्या परिवर्तन करने चाहिये, जानिए:

  • प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में जागना चाहिए।
  • अपने नित्यकर्मों में दो कर्मों को अवश्य ही जोड़ना चाहिए।
  • सर्वप्रथम व्यायाम और दूसरा उद्वर्तन (उबटन)।
  • सुबह उठकर योग, प्राणायाम, सूर्यनमस्कार, दण्ड-बैठक  आदि करने से लगभग 720 रोगों से बचाव होता है।
  • मार्च-अप्रैल में कफ प्रकोप होने के कारण तेल मालिश (मर्दन) शरीर के लिए उतनी अधिक फायदेमंद नहीं रहती जितना कि उबटन करना।
  • रोज़ स्नान करने से थोड़ी देर पहले व्यायाम ( exercise) करना बसंत ऋतु में स्वस्थ और मस्त (healthy & fit) बनाए रखता है।
  • पलाश पुष्प (टेसू के फूल) के पानी से नहाना चाहिए।
  • कफ के कारण होने वाले ब्लॉकेज, आलस्य, हृदय रोग, थायराइड, फैटी लिवर ऐसी कोई भी बिमारी हो योग-व्यायाम करने से थी होती है।
अष्टांगहृदयम् में व्यायाम और उबटन
लाघवं कर्मसामर्थ्यं दीप्तोSग्निमेर्दसः क्षयः।
विभक्तघनगात्रत्वं व्यायामादुपजायते ।। ..सू.2/10

अर्थात् रोज़ व्यायाम या कसरत करने से शरीर बलिष्ठ बनता है।

शरीर का आकार और बनावट सुदृढ़ व सुडौल बनते हैं।

व्यायाम के बाद स्नान से 10 मिनट पहले उबटन करना चाहिए।  

उबटन क्या होता है?

आयुर्वेद  के प्राचीन ग्रंथों में उबटन को उद्वर्तन के नाम से लिखा गया है।

उबटन कैसे बनाया जाता है?  

उद्वर्तन (उबटन) बनाने के अनेक प्रकार हैं।

सामान्य रूप से उबटन बनाने और प्रयोग करने की विधि

  • एक कटोरी लेकर लगभग दो चम्मच ज्यौ का या चने का आटा ले लें।
  • उसमें एक चम्मच चन्दन या हल्दी पाउडर मिला लें।
  • लेप बनाने के लिए 1 चम्मच सरसों का तेल लिया जा सकता है।
  • अब इस सबको मिलाकर नहाने से 10 मिनट पहले शरीर पर रगड़ना या घिसना चाहिए। इसे उद्वर्तन या उबटन करना कहते हैं।

अष्टांगहृदयम् में उद्वर्तन (उबटन) के लाभ

यह आसान सी दिखने वाली चीज़ एक चमत्कारी दवा या औषधि है। जिसे वाग्भट्ट ऋषि ने अपने अष्टांगहृदयम् में कुछ इस प्रकार कहा है-

उद्वर्तनं कफहरं मेदसः प्रविलायनम्।
स्थिरीकरणमङ्गानां त्वक्प्रसादकरं परम्।। .सू.2/15

अर्थात् रोज़ाना स्नान से 5 या 10 मिनट पहले उबटन करें।

घर पर बनाए गए या बाज़ार में मिलने वाले आयुर्वेदिक उबटन को शरीर पर रगड़ने से कई फायदें होते हैं।

लाभ:

  • कफ का नाश।
  • शरीर में जमा जो भी अतिरिक्त वसा (extra fat), मोटापा (obesity) या चर्बी है, वह मेद (fatty tissue) पिघलकर सूख जाएगी।
  • त्वचा को चमकदार बनाने के लिए उबटन ही परम औषधि है। तो मार्च और अप्रैल के महीने में उबटन अवश्य ही करना चाहिए।

बसंत रितु में रक्त शुद्धि का घरेलू नुस्खा

नीम की 5-7 नयी कोपलें लेकर धो लीजिए।

2 काली मिर्च लीजिए और एक चम्मच शहद लिजीए।

मार्च-अप्रैल में रोज़ 15 दिनों तक खाली पेट चबाइए।

इससे आपके शरीर का रक्त शुद्ध होकर, कफ का नाश होता है और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

वेदविदयोग (vedvidyog) के अन्य लेख में आयुर्वेद के अनुसार वसंत ऋतु और वसंत ऋतुचर्या के बारे में विस्तृत जानकारी दी हुई है। आप वहाँ जाकर पढ़ सकते हैं।

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