You are currently viewing VedVid Yog Prarthana

VedVid Yog Prarthana

वेदविदयोग प्रार्थना

ये वेदविदयोग प्रार्थना  एक यौगिक क्रिया है जो कि योगाभ्यासी कप्तानसिंह चौधरी (कपिल) द्वारा खोजी गयी है।

इसमें योगाभ्यास करने से पूर्व शरीर के समस्त अंग- प्रत्यंगों को मृत्युपर्यन्त स्वस्थ व सक्रिय रखने हेतु वैदिक रीति-नीति से और ऋषि परम्परा के अंतर्गत परमात्मा से प्रार्थना करने की विभिन्न विधियों का नवीन संकलन है।

वेदविदयोग प्रार्थना  क्या है ?

प्रत्येक मनुष्य चाहता है कि वह जीवनपर्यंत स्वस्थ-समृद्ध रहे। समृद्ध रहने हेतु निरोगी शरीर के साथ ऊर्जावान मस्तिष्क व बलिष्ठ मन चाहिए। स्वास्थ्य की बात आते ही रूप-सौंदर्य एवं शक्तिशाली शरीर की कल्पना मानस-पटल पर उभर कर आती है। मैंने अपने वर्षों के शोध एवं अभ्यास से हमारी वैदिक, वैज्ञानिक और ऋषि-मुनियों द्वारा प्रदत्त यौगिक परम्परा के अनुसार विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति करने वाली वेदविदयोग प्रार्थना  रची है, जो प्रत्येक स्तर व आयु के योगी अथवा योगाभ्यासी के मन और आत्मा को तृप्ति देकर पोषित करेगी और उसी से योग के वास्तविक ध्येय ‘मोक्ष’ को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।

वेदविदयोग प्रार्थना

कैसे करें वेदविदयोग प्रार्थना ?

  • नित्यकर्म (शौच, स्नानादि) से निवृत्त होकर, एकांत स्थान में एक बड़ी दरी या आसन बिछा लें। स्थान खुला हो, या कोई ऐसा चौक, बरामदा,  कक्ष, आदि हो जहां प्रातःकालीन व सायंकालीन शुद्ध प्राणवायु का आवागमन हो और वातावरण स्वच्छ, शांतिमय हो।
  • बिछे आसन पर सम्भव हो सके तो सूर्याभिमुख (सूर्य की ओर मुख करके), दोनों पैर के पंजे मिलाकर, हाथों की हथेलियां जंघास्थियों के आजू-बाजू रखकर सीधे खड़े हो जाएं।
  • आंखें बंद करके धीमी लम्बी सांस भरकर परमेश्वर के सर्वोत्तम नाम ओ३म् का लंबा उच्चारण करें। ऐसा 3 बार करें।
  • कुछ क्षण स्वांस पर ध्यान लगाने का प्रयास करें। जब सांस आती है और जब जाती है तो ओ३म् का स्वर कानों में सरसराहट करती हुई बोलती है। ऐसा आभास करें।
वेदविदयोग प्रार्थना
वेदविदयोग प्रार्थना
वेदविदयोग प्रार्थना
वेदविदयोग प्रार्थना
वेदविदयोग प्रार्थना

 जानिए वेदविदयोग प्रार्थना और यौगिक प्रार्थनाओं से भिन्न और विशेष कैसे है-

  • जब पूरक (सांस भरना) करें तो शुद्ध जड़ी-बूटी (नीम, तुलसी, गिलोय, आदि) के लाभ व गुणों का चिंतन करें।
    • जैसे वायु के साथ प्राणों में ये सब औषधीय गुण आपके भीतर प्रवेश कर रहे हैं।
    • शुद्ध सुगंधित प्राणवायु एवं सद्विचार (धर्म, ज्ञान, विद्या, दान, तप, आदि) को ग्रहण करने की भावना करें।
    • भावना करें कि पवित्रता, वीरता, संयम, तेज व ओज को मैं धारण करते हुए गुणवान बन रहा हूँ।
  • रेचक (सांस बाहर) करते समय रोग-व्याधियों को शरीर से बाहर निकलता हुआ आभास करें।
    • भावना करें कि दुर्बलता, दोष, ज्वर, दमा, आम-वात, सन्धिवात,आदि सब मुझमें से समाप्त हो रहे हैं।
    • अशुद्ध वायु (अपान या अधो वायु) एवं कुविचार (ईर्ष्या, द्वेष, राग, क्रोध, वासना, आदि) का शमन होने का भाव लाएँ।
    • परमात्मा को सब क्रियाओं का साक्षी मानते हुए, उससे सद्बुद्धि मांगते जाएँ।
    • मृत्युपर्यन्त अपने शरीर के सभी अंग-प्रत्यंगों के स्वस्थ एवं बलिष्ठ रहने की प्रार्थना करें।

शारीरिक क्रिया के साथ यौगिक प्रार्थना 

  • अब गहरी सांस भरते हुए अपने दोनों हाथों को आज-बाजू कंधे के समानांतर फैलाकर हथेलियों व कलाइयों को खींचें।
  • जब सांस भीतर जाए तब ऊर्जा, बल, ओज व तेज की प्राप्ति की कामना करते रहें।
  • अंगुलियों व भुजाओं को कसते हुए, सीधे सिर के ऊपर उठाते हुए, धीरे धीरे नीचे सीने के सामने लाकर हाथ जोड़ लें।
  • इस स्थिति को प्रणाम मुद्रा भी कह सकते हैं। इसमें दोनों कोहनियाँ एक सीधी पंक्ति की भांति रहती हैं।
  • अपनी क्षमतानुसार सांस को भीतर ही रोक कर रखें अर्थात् आंतरिक कुम्भक करें।
  • सीधे खड़े रहते हुए प्रणाम मुद्रा में हथेलियों को बलपूर्वक एक दूसरे से चिपकाएँ।
  • निरोगी, वीर्यवान, मेधावी, साहसी एवं महान बनने की भावना करते रहें।
  • कुछ क्षण रुककर सांस को बाहर छोड़ते हुए हाथों को नीचे जंघाओं के पास ले आएं।
  • मेरे सभी अंग-प्रत्यंग (मस्तिष्क, हृदय, गला, चेहरा, नाक,कान,फेंफड़े, पेट, गुर्दे, यकृत, आंतें, तिल्ली, हड्डियां, मांसपेशियां एवं नस-नाड़ियां) सक्षम, सुदृढ़ व स्वस्थ बन रहे हैं।

इस वेदविदयोग प्रार्थना (VedVidYog prarthana) में बहुत ही आवश्यक क्रिया, भाव और बिन्दुओं को जोड़ा गया है।

ये सभी बिन्दु अन्य प्रार्थनाओं में नहीं मिलते हैं, यही बात इस प्रार्थना को अन्य यौगिक प्रार्थनाओं से भिन्न बनाती है।

आगे के ब्लॉग में एचएम जानेंगे यौगिक सूक्ष्म व्यायाम क्या हैं और कितने हैं ?

Leave a Reply