डायबिटीज़
आयुर्वेद के सुप्रसिद्ध ग्रन्थों के अतिरिक्त सभी अन्य आयुर्वेदिक पुस्तकों में डायबिटीज़ मधुमेह का वर्णन मिलता है।
आयुर्वेद की चरक संहिता में निदानस्थान के चतुर्थ अध्याय में प्रमेह-निदान का व्याख्यान मिलता है।
ऋषि चरक के अनुसार 4 प्रकार के वात-प्रमेह होते हैं उनमें से एक मधुमेह (sugar) है।
इत्येते चत्वार: प्रमेहा वातप्रकोपनिमित्ता व्याख्या भवन्ति ॥ -चरक संहिता, निदानस्थानम्, अध्याय ४ – ३८
आयुर्वेद के अनुसार डायबिटीज़ (मधुमेह) क्या है ? Diabetes In Ayurveda
मधु का अर्थ है – शहद और मेह का अर्थ है – मूत्र ।
चरक संहिता में निदान स्थान के चौथे अध्याय में डायबिटीज़ (Diabetes) रोग का उल्लेख मिलता है।
हमारे शरीर में ओज होता है। ओज को सरल शब्दों में ग्लूकोज़ (glucose) कहते हैं।
ग्लूकोज़ को मधु, शर्करा या मधुशर्करा भी कहते हैं। शरीर में स्थित ओज का स्वभाव मधुर (मीठा) है।
वायु के रुक्ष एवं कषाय गुण शर्करा (ओज) के साथ मिलते हैं।
वायु अपनी शक्ति से ओज को भी कषाय में परिवर्तित कर देता है।
जब ये मिलकर मूत्राशय में जाता है तब मधुमेह (Diabetes) रोग उत्पन्न होता है।
मधुमेह या ओजोमेह में मूत्र के साथ अपर ओज का निष्कासन होता है।
सुबोध भाषा में कहें तो मूत्र के साथ-साथ उसमें शर्करा (glucose) भी शरीर से बाहर निकलने लगता है।
इससे ओज का क्षय होने लगता है।
डायबिटीज़ मधुमेह के लक्षण, आयुर्वेद की चरक संहिता में डायबिटीज़ के लक्षण
जो मनुष्य वायु के प्रकोप से कषाय, मधुर, पाण्डुवर्ण और रुक्ष मूत्र त्याग करता है
उसको मधुमेह का रोगी (Diabetic Patient) जानना चाहिए।
यह रोग अन्य तीन वात-प्रमेह रोगों की भांति असाध्य है।
अर्थात् चरक संहिता के अनुसार मधुमेह एक असाध्य रोग है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में डायबिटीज़ के कारण व लक्षण
शुगर (sugar) क्या है ?
आधुनिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार जब अग्नाशय (pancreas) में मधुनिषूदनी (insulin) का अभाव हो जाता है।
अर्थात् जितनी मात्रा में पैन्क्रियाज़ द्वारा इंसुलिन बनना चाहिए उतना नहीं बनता है।
इससे रक्त में शर्करा (ग्लूकोज़) की मात्रा बढ़ जाती है। इस स्थिति को ही डायबिटीज़ कहते हैं।
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