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Karmanyevadhikaraste

कर्मण्येवाधिकारस्ते

जब भी कर्मों के फल की बात आती है तो भगवद्गीता का एक श्लोक ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’  हम सबने बार-बार सुना है।

विद्यालय हो अथवा घर-परिवार हमारे शिक्षकों व अभिभावकों ने हमें इस श्लोक के माध्यम से अवश्य ही प्रेरित किया है।

परंतु क्या आप भगवद्गीता के अध्याय 2 के 47वें  श्लोक ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते..’ के प्रत्येक शब्द का संस्कृत व्याकरण के अनुसार अर्थ जानते हैं?

कर्मण्येवाधिकारस्ते श्लोक का व्याकरण अनुसार अर्थ व चिन्तन।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ।।

-भगवद्गीता २/४७

पदार्थ

कर्मणि – कर्म में ही,

एव- निश्चय करके अर्थात् ही,

ते- तुम्हारा,

अधिकारः- अधिकार है

फलेषु- फलों में,

कदाचन-कदापि,

मा-नहीं,

कर्मफलहेतुः- कर्मफल के हेतु अर्थात् कर्म के फलों का कारण

मा- नहीं / मत

भू:- हो / बनो । इस प्रकार

ते- तुम्हारा / तेरा

सङ्ग- संग,

अकर्मणि- अकर्मों में,

मा – नहीं

अस्तु- होगा।

भाष्य – इस श्लोक में बताया है कि मनुष्य को फल के संकल्प को प्राथमिकता न देते हुए निष्काम कर्म करने चाहियें।

श्लोक कर्मण्येवाधिकारस्ते का सरल भावार्थ

निश्चित ही मनुष्य का अधिकार केवल कर्मों को करने में ही है, फल पर उसका अधिकार नहीं है। ये अधिकार परमेश्वर का ही है। स्वयं को फल का कारण (यंत्र) नहीं जानना-मानना चाहिए। परन्तु इसका अर्थ ये भी नहीं समझना चाहिए कि मनुष्य कर्म ही नहीं करे। कर्मों का कभी त्याग मत करो। परंतु निष्काम भाव से अर्थात् बिना फल के संकल्प के कर्म करते रहना चाहिए।

ऐसा इसलिए क्योंकि यदि फल की इच्छा बलवती होगी तो ध्यान कर्म पर कम रहेगा और फल के स्वप्न पर अधिक।

इससे मनुष्य 100% एकाग्रचित् हो अपने कर्म से पुरूषार्थ नहीं कर पाता।

उदाहरण –

किसी विधार्थी को बड़े पद की सरकारी नौकरी की तैयारी करने का अवसर प्राप्त हुआ।

अब वो अध्ययन के अथवा शिक्षण संस्थान में कक्षा लेते समय फल की इच्छा करता रहे। अर्थात् वो कक्षा में शिक्षक के पढ़ाये जा रहे पाठ पर ध्यान देने के स्थान पर ये सोचे कि जब वो सरकारी अधिकारी बनकर कुर्सी पर बैठेगा, या अपने परिवार वालों से मिलेगा तो कैसा मान- सम्मान होगा। इससे वो अपने कर्मों से उचित पुरुषार्थ नहीं कर पाएगा।

मनुष्य के पास केवल कर्म करते रहने का ही अधिकार है।  फल देने का अधिकारी तो परमेश्वर ही है।

जीवात्मा सदैव कर्मशील रहती है। एक भी क्षण ऐसा नहीं जब जीवात्मा बिना कर्म किए रह सकती हो।

अतः कर्म तो होते ही रहेंगे और करते ही रहना है परंतु उसके फल प्राप्ति की आसक्ति नहीं रखनी चाहिए।

आगे के लेखों में जानिए भगवद्गीता के प्रमुख श्लोक जो आपके जीवन को एक नयी ऊर्जा और दिशा प्रदान करेंगे।

वेदविदयोग के पोर्टल पर भगवद्गीता वास्तविक शब्दार्थ सहित बिल्कुल संस्कृत व्याकरण के अनुसार पदार्थ व भावार्थ के साथ प्रस्तुत है।

आप सभी जन इसे पढ़कर लाभ उठाएँ और भारत देश और संस्कृति के उत्थान में सहयोगी बने। ओ३म् !

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